Motivation chahiye to paralympic khiladiyon se lo

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जिस इंसान की विल पॉवर (will power) मजबूत है उसे कोई नहीं हरा सकता है। माना कि सफलता आसानी से नहीं मिलती लेकिन मजबूत इरादे वाले लोग असफलता के सामने कभी नहीं झुकते। Motivation chahiye to paralympic khiladiyon se lo, आर्टिकल में हम आपको मोटिवेशन के बारे में बताएंगे।

पैरालंपिक खिलाड़ी किसी भी व्यक्ति के लिए प्रेरणा का सबसे अच्छा उदाहरण हैं। मोटिवेशन तो आप कहीं से भी ले सकते हैं लेकिन इन खिलाड़ियों की कहानी आपके अंदर धधकती ज्वाला जला सकती है। यदि आपके सपने सच्चे हैं और इरादे नेक हैं तो आप कामयाबी जरूर हासिल करोगे। 

जॉब पाने के लिए कॉम्पिटिशन हो या फिर बिजनेस एम्पायर खड़ा करने का सपना हो। दोनों में एड़ी – चोटी का जोर लगाना ही पड़ता है। और यदि इसके बाबजूद भी सफलता प्राप्त न हो तो अधिकतर लोग टूट जाते हैं। हालात चाहे जो भी हों यदि आप दृढ़ निश्चय के साथ अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हैं तो जीतना तय है। 

Paralympic games Tokyo 2020 | पैरालंपिक गेम्स टोक्यो 2020

बहुत से लोगों को कहते सुना होगा कि मेरा शरीर ठीक होता या फिट होता तो मैं भी ये काम कर लेता। बहानेबाजी के लिए हजार कारण मिल सकते हैं लेकिन कुछ कर गुजरने के लिए एक निश्चित कारण ही महत्त्वपूर्ण होता है। यानी आपके पास एक निश्चित लक्ष्य होना चाहिए और उसे हासिल करने के लिए प्रतिबद्धता (commitment) बहुत जरूरी है।

आज हम टोक्यो पैरालंपिक गेम्स 2020 की बात करेंगे, जो 24 अगस्त 2021 से 05 सितंबर 2021 तक खेले गए थे। पैरालंपिक खेलने वाले खिलाड़ी हिम्मत और जज्बे का एक जिंदा सबूत है। आगे हम इन खिलाड़ियों के जीवन का संक्षिप्त परिचय देने वाले हैं। और ये भी बताएंगे कि यदि आप अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हो तो परिस्थितियां आपको डिगा नहीं सकती। आपकी जीत निश्चित है। 

ये जो हम बताने जा रहे हैं वो उन महान खिलाड़ियों की मुंहजुबानी है जिसे हमने पढ़ा और सुना है। ये वो लोग हैं जिन्होंने अपनी कमजोरी को नजरंदाज करके अपने गोल (लक्ष्य) को प्राथमिकता दी। उन्होंने ये सिद्ध कर दिया कि अगर आपका हौसला बुलंद और इरादे मजबूत हैं तो कुछ भी असंभव नहीं है। 

टोक्यो पैरालंपिक गेम्स 2020 के पदक विजेता भारतीय खिलाड़ी :

1. भाविनाबेन पटेल :

भाविना पटेल ने टोक्यो पैरालंपिक गेम्स में सिल्वर मैडल जीतकर भारत को पहला मैडल दिलाया। टोक्यो पैरालंपिक में ये भारत का पहला मैडल है। भाविना पटेल ने यह मैडल टेबल टेनिस के विमेंस सिंगल्स के क्लास4 कैटेगरी में जीता है। उनका मुकाबला फाइनल में दुनिया की नंबर वन चीनी खिलाड़ी यिंग झोउ से हुआ था। 

कैसा रहा है भाविना पटेल का सफर:

भाविना पटेल का जन्म गुजरात के मेहसाना में हुआ था। एक साल की उम्र में ही वो एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना की शिकार हो गई जब वो चलना सीख ही रही थीं। इस घटना ने उनके शरीर का कमर से नीचे का हिस्सा बेकार कर दिया। 

फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। बारह साल की उम्र में वे कंप्यूटर सीखने अहमदाबाद के वस्त्रापुर में ब्लाइंड पीपुल्स एसोसिएशन चली गईं। यहां उनकी मुलाकात टेबल टेनिस खेलने वाले विकलांग बच्चों से हुई। और यहीं से उन्होंने अचानक टेबल टेनिस को चुन लिया। 

उसके बाद उन्होंने अथक परिश्रम किया। उनके कोच ललन दोशी उन्हें 2008 से प्रशिक्षण दे रहे हैं। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान उन्होंने प्रशिक्षण के लिए एक सेकंड हैंड रोबोट भी खरीदा था। कोच ललन कहते हैं कि भाविना के अंदर उन्होंने नियमित प्रशिक्षण के दौरान जीतने वाली मानसिकता को देखा है। यही मानसिकता उन्हें कभी न हारने वाली अजेय भाविना बनाती है। 

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2. अवनी लेखरा :

अवनी लेखरा ने महिलाओं के 10 मीटर एयर राइफल के एसएच1 क्लास में भारत को गोल्ड मैडल दिलाया। 19 साल की अवनी पैरालंपिक गेम्स में गोल्ड मैडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। इसके बाद उन्होंने 50 मीटर एयर राइफल के क्लास 3पी एसएच1 में ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया। टोक्यो पैरालंपिक गेम्स में ये उनका दूसरा मैडल है।

अवनी लेखरा का संघर्ष :

राजस्थान के जयपुर में जन्मी अवनी लेखरा भारतीय शूटर हैं। एक सड़क दुर्घटना ने अवनी की जिंदगी को बहुत प्रभावित किया। इस दुर्घटना में उनकी रीड की हड्डी में गंभीर चोट आई जिस वजह से खड़ी होने में असमर्थ हो गई। अब व्हीलचेयर ही उनका सहारा था।

अपनी इस हालत की वजह से वे किसी से ना मिलती और न बात करतीं। खुद को एक कमरे में बंद रखने लगीं। उनके पिता ने इस हालत से उभरने के लिए उन्हें स्पोर्ट्स से जोड़ने का मन बनाया। वे उन्हें कभी कभी शूटिंग रेंज ले जाया करते थे।

अवनी का इंस्पिरेशन :

दुर्घटना के कुछ साल बाद ही अवनी लेखरा ने शूटिंग का मन उस समय बना लिया था जब उन्होंने अभिनव बिंद्रा की लिखी हुई किताब पढ़ी। वे अभिनव बिंद्रा को अपना इंस्पिरेशन मानती हैं। उन्होंने इसके बाद अपनी शूटिंग की प्रैक्टिस चालू कर दी। 

उनके पिता का कहना था कि अवनी तब तक प्रैक्टिस करती थीं जब तक कि वो थक कर चूर- चूर न हो जाए। कोविड 19 के लॉकडाउन ने उनकी प्रैक्टिस को बहुत प्रभावित किया। उनके पिता ने अपने घर में ही टारगेट सेट कर दिए थे जिससे कि अवनी की प्रैक्टिस न छूट जाए। 

आखिरकार अवनी लेखरा ने यह साबित कर दिया कि आपके लक्ष्य के सामने कितनी भी मुश्किलें आएं, सब छोटी होती हैं। 

3. निषाद कुमार :

टोक्यो पैरालंपिक गेम्स में निषाद कुमार ने हाई जम्प में देश को रजत पदक दिलाया है। निषाद कुमार, हिमाचल प्रदेश के ऊना के एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं। निषाद ने पुरुषों के हाई जंप टी 47 क्लास में सिल्वर मैडल जीता है। उन्होंने प्रशिक्षकों, परिजनों और सहयोगियों को अपनी इस जीत का श्रेय दिया है।

करीब डेढ़ साल बाद वे अपने घर वापस लौटे हैं। मैडल जीतकर जब निषाद अपने घर लौटे तो उन्होंने मीडिया से बातचीत की।

निषाद कुमार ने बताया कि एक छोटे से गांव से निकलकर पैरालंपिक गेम्स तक का सफर बहुत संघर्षपूर्ण रहा है। उन्होंने दिव्यांगों से खेल में बढ़ – चढ़कर हिस्सा लेने के लिए अनुरोध किया। और ये भी कहा कि वे नशे और बुरी आदतों से दूर रहें तथा स्पोर्ट्स में अपना भविष्य बनाएं। खेल से न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य (mental health) भी बेहतर रहता है।

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4. सुमित अंतिल :

पैरा ओलंपिक टोक्यो 2020 में सुमित अंतिल ने भला फेंक, एफ64 स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल किया है। उन्होंने पुरुषों के जैवलिन थ्रो में गोल्ड मैडल पर कब्जा कर देश को दूसरा गोल्ड मैडल दिलाया है। सुमित ने इस स्पर्धा में अपने पांच प्रयासों में खुद के ही तीन विश्व रिकॉर्ड को तोड़ा। 

इतना सब खोने के बाद भी खुद को संभाल कर रखा: 

23 साल के सुमित सोनीपत (हरियाणा) के रहने वाले हैं। सात साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया जो एयरफोर्स में तैनात थे। उनकी मां ने ही उनकी देखभाल की। सुमित ने पहले कुश्ती में अपना करियर बनाने की सोची। 

सन् 2015 में वे बारहवीं की पढ़ाई कर रहे थे। जब ट्यूशन पढ़कर वापस लौट रहे थे तब एक सीमेंट से भरे ट्रैक्टर–ट्रॉली ने उन्हें टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में उन्हें अपना एक पैर गंवाना पड़ा और इसकी साथ उनका कुश्ती का सपना भी टूट गया। 

इसके बाद सुमित ने जैवलिन थ्रो को चुना और उसकी तैयारी शुरू कर दी। 2018 में उन्होंने एशियन चैंपियनशिप में भाग लिया लेकिन मेडल हासिल नहीं कर पाए। 2019 में उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में सिल्वर मैडल हासिल किया। 

सोने के लिए संघर्ष : 

पैरा ओलंपिक टोक्यो में सुमित ने नया कीर्तिमान इतिहास रच डाला। उन्होंने अपने पांच प्रयासों में खुद के ही तीन रिकॉर्ड्स को ब्रेक किया और नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। सुमित अंतिल ने टोक्यो में मेन्स पैरालंपिक जैवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक हासिल कर लिया। और ये साबित कर दिया कि अगर आपकी will power मजबूत है और ध्यान लक्ष्य पर केंद्रित है तो आपकी जीत निश्चित है।

5. योगेश कठुनिया :

योगेश कठुनिया दिल्ली से सटे बहादुरगढ़ (हरियाणा) के रहने वाले हैं। उन्होंने पैरालंपिक गेम्स में चक्का फेंक (डिस्कस थ्रो) में सिल्वर मैडल अपने नाम किया है। योगेश ने यह मैडल पुरुषों के चक्का फेंक एफ56 कैटेगरी में हासिल किया है।

पैरा एथलीट योगेश कठुनिया ने रजत पदक जीतकर भारत और अपने देशवासियों को गौरवान्वित किया है। योगेश के चक्का फेंक में मैडल हासिल करने पर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने उन्हें बधाई दी है।

6. शरद कुमार :

बिहार के रहने वाले शरद कुमार एक पैरा एथलीट हैं। उन्होंने पुरुषों की हाई जंप टी63 स्पर्धा में देश को कांस्य पदक दिलाया है। शरद कुमार ने पैरालंपिक गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर बिहार और भारत का नाम रोशन किया है। प्रधानमंत्री मोदीजी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ट्वीट कर शरद कुमार को मेडल के लिए बधाई दी है।

दो साल की उम्र में पोलियो की नकली दवा पीने से शरद कुमार के एक पैर में लकवा मार गया था। इस वजह से वो दिव्यांग हो गए थे। सात साल की उम्र से ही शरद ने ऊंची कूद की प्रैक्टिस चालू कर दी थी।

शरद कुमार की उपलब्धियां :

  1. दक्षिण कोरिया में संपन्न हुए 2014 एशियाई पैरा खेलों में एफ42 कैटेगरी शरद ने गोल्ड मैडल जीता है।
  2. वर्ल्ड पैरा चैंपियनशिप 2017 लंदन, ऊंची कूद टी42 वर्ग में शरद ने सिल्वर मैडल हासिल किया।
  3. एशियन पैरा गेम्स 2018 में हाई जंप के कैटेगरी टी42/टी63 में गोल्ड मैडल जीत चुके हैं।

7. मनीष नरवाल :

मनीष नरवाल ने पी4 मिक्सड 50 मीटर पिस्टल एसएच1 स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल किया है। गत वर्षों की उपलब्धियों के आधार पर मनीष को 2020 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। जकार्ता पैरा एशियन गेम्स में पदक जीतने पर सभी खिलाड़ियों से प्रधानमंत्री मोदीजी से मुलाकात हुई थी। उसी समय मनीष ने मीडिया के सामने ये कहा था कि टोक्यो पैरालंपिक में पदक जीत कर लाऊंगा।

एक बार फिर जगी उम्मीद :

मेडल जीतने से पहले 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में मनीष सातवें स्थान पर आए थे। हार का सामना करने पर मनीष और उनके परिजन काफी निराश हो गए थे। मनीष शूटिंग कोर्ट में ही निराश होकर बैठ गए थे। फिर कुछ समय बाद उनके पिता ने फोन पर मनीष से बात की। और समझाया कि अभी भी तुम्हारे पास एक मौका और है, उस पर अपना फोकस करो। 

मां को फोन कर बोले थे मनीष कल मेरा दिन होगा। अपनी प्रतिभा पर भरोसा कर जीतने की उम्मीद से मनीष ने 50 मीटर पिस्टल में निशाना साधा। और वे अपने परिजनों तथा प्रधानमंत्री से किए हुए वादे को पूरा करने में कामयाब हुए। 

शूटिंग से पहले मनीष, फुटबॉलर बनना चाहते थे।

हरियाणा के रहने वाले मनीष नरवाल की पहली इच्छा फुटबॉलर बनने की थी। जन्म से ही मनीष का दाहिना हाथ खराब था। दिव्यांगता की चुनौतियों की वजह से वो फुटबॉलर नहीं बन सके। लेकिन दिव्यांगता मनीष के एथलीट बनने के इरादों को हरा न सकी। मनीष के पिता और सहयोगियों ने शूटिंग में हाथ आजमाने को कहा। 

सन् 2016 में मनीष ने शूटिंग में करियर बनाने का फैसला किया। पहली ही प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल करते ही उनका self confidence बढ़ गया। इसके बाद मनीष ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मनीष नौ सालों से लगातार निशानेवाजी में रिकॉर्ड बना रहे हैं। तभी तो 19 साल की उम्र में ही 38 से भी ज्यादा पदक जीत चुके हैं मनीष नरवाल।

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8. सिंहराज अधाना:

पैराओलंपिक खेल टोक्यो में सिंहराज अधाना ने 10 मीटर एयर पिस्टल एसएच1 के फाइनल में कांस्य पदक हासिल किया। सिंहराज ने अगले इवेंट मिक्सड 50 मीटर पिस्टल एसएच1 में रजत पदक जीता। एक ही खेल में दो पदक जीतने वाले चुनिंदा खिलाड़ियों में सिंहराज अधाना का नाम भी शामिल हो गया है।

आर्थिक परेशानी और कोरोना संक्रमण को मात देकर अपने लक्ष्य पर किया पूरा फोकस:

लॉकडाउन के दौरान जब सिंहराज की प्रैक्टिस नहीं हो पा रही थी तो वे बड़े चिंतित हो गए थे। शूटिंग एक महंगा खेल जिसकी तैयारी में भी पैसा खर्च होता है। घर में आर्थिक तंगी का मंजर था। उनकी पत्नी ने अपने जेवर बेचकर सिंघराज को प्रैक्टिस चालू रखने के लिए प्रेरित किया।

कोरोना के लॉकडाउन में सिंहराज की प्रैक्टिस अच्छी नहीं चल रही थी। घर में ही बनाया था अस्थाई 10 और 50 मीटर का रेंज। सिंहराज खुद कोरोना संक्रमित हो गए थे फिर भी अपना संघर्ष जारी रखा। खुद को आइसोलेशन में रखकर शूटिंग की प्रैक्टिस करते रहे।

जन्म से पोलियो ग्रसित सिंहराज अधाना ने 35 साल की उम्र में शूटिंग में अपने करियर की शुरुआत की। टोक्यो जाने से पहले सिंहराज ने अपने परिवार और प्रधानमंत्री मोदीजी से मैडल लाने का आश्वासन दिया था। 

9. देवेंद्र झाझरिया :

देवेंद्र झाझरिया टोक्यो पैरालंपिक गेम्स में भाला फेंक एफ46 की कैटेगरी में रजत पदक विजेता रहे। देवेंद्र का यह स्कोर उनका निजी और बेस्ट स्कोर है। इससे पहले देवेंद्र दो बार स्वर्ण पदक विजेता रह चुके हैं। 

चूरू (राजस्थान) के निवासी देवेंद्र झाझरिया को आठ साल की उम्र में पेड़ पर चढ़ते हुए बिजली का झटका लगा था। इलाज चलते हुए भी उन्हें अपना बायां हाथ गंवाना पड़ा। देवेंद्र झाझरिया वर्तमान में भारतीय खेल प्राधिकरण के साथ कार्यरत हैं। 

10. सुंदर सिंह गुर्जर :

सुंदर सिंह गुर्जर ने टोक्यो पैरालंपिक में एफ46 क्लास में जेवलिन फेंककर में कांस्य पदक पर कब्जा किया है। सुंदर गुर्जर ने उसी कैटेगरी में भाला फेंका जिसमें देवेंद्र झाझरिया ने सिल्वर मैडल जीता था। एक ही गेम में दो मैडल हासिल कर भारतीय पैरा एथलीटों ने कमाल कर दिखाया। 

सबसे पहले 2012 में सुंदर सिंह ने जेवलिन फेंका था। उस समय वे सामान्य वर्ग में हिस्सा लेते थे लेकिन 2015 में हुए हादसे ने दिव्यांग बना दिया। इस दुर्घटना में सुंदर को अपना बायां हाथ कटवाना पड़ा। 

फिर भी मनोबल नहीं टूटा:

एक बार को तो सुंदर सिंह अपनी हथेली काटने की वजह से टूट गए थे। और जेवलिन छोड़ने का भी मन बना लिया था लेकिन बाद में उन्हें पैरा एथलीट के बारे में पता चला। फिर उन्होंने तैयारी शुरू कर दी और रियो ओलंपिक 2016 में टॉप किया।

रियो ओलंपिक में इतना बेहतर प्रदर्शन करने के बाद भी सुंदर मैडल हासिल नहीं कर पाए। एक्चुअल में, अनाउंसेंट कॉल सुनने में हुई देरी के कारण उन्हें इवेंट से डिस्क्वालीफाई कर दिया। इसके बाबजूद भी सुंदर सिंह का मनोबल नहीं टूटा। और टोक्यो पैरालंपिक में उन्होंने ये साबित कर दिया कि आपके सपने आपके अलावा कोई दूसरा नहीं तोड़ सकता। 

2018 में सुंदर सिंह गुर्जर महाराणा प्रताप अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं। वर्ष 2019 में केंद्र सरकार की तरफ से सुंदर को अर्जुन अवार्ड से पुरस्कारित किया जा चुका है।

11. मरियप्पन थंगावेलु :

मरियप्पन थंगावेलु ने टोक्यो पैरालंपिक में टी63 वर्ग की ऊंची कूद में रजत पदक अपने नाम किया। इससे पहले 2016 रियो पैरा ओलंपिक में मरियप्पन देश के लिए स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। टी63 कैटेगरी में वो लोग आते हैं जो अपने पैर से विकलांग हों या पैर की मांसपेशियां कमजोर हों।

ऐसी हुई परवरिश:

मरियप्पन थंगावेलु का जन्म तमिलनाडु के सालेम में एक गरीब परिवार में हुआ था। पांच साल की उम्र में जब वो खेल रहे थे तो एक बस ने उन्हें टक्कर मार दी। इस हादसे में मरियप्पन का एक पैर पूरी तरह से कुचल गया था, जिससे बाद में पैर को काटना पड़ा। 17 साल तक अदालत का चक्कर लगाने के बाद उन्हें 2 लाख मुआवजा मिला। इसमें से एक लाख रुपए तो वकीलों की फीस में चले गए। बाकी एक लाख उनकी मां ने मरियप्पन के भविष्य के लिए बैंक खाते में जमा कर दिए।

थंगावेलु की मां ने उनके इलाज के लिए 3 लाख रुपए उधार लिए थे जो 2016 तक चुका नहीं पाए। उनकी मां सरोज पहले दहाड़ी पर ईंट उठाने का काम करती थीं। एक बार जब उन्हें छाती में दर्द हुआ था। तो मरियप्पन ने किसी से पांच सौ रुपए उधार लिए और अपनी मां को सब्जी बेचने के काम में लगा दिया। 

बचपन में मरियप्पन को वॉलीबाल खेलना अच्छा लगता था। एक पैर खराब होने के बाबजूद भी वे खेलते रहते थे। एक दिन उनके टीचर ने कहा कि तुम अपना हाथ ऊंची कूद में क्यों नहीं आजमाते। तब पहली बार 14 साल की उम्र में मरियप्पन ने ऊंची कूद में हिस्सा लिया। सामान्य एथलीटों के साथ पार्टिसिपेट करने पर भी मरियप्पन दूसरे स्थान पर रहे।

12. प्रवीण कुमार :

नोएडा, उत्तर प्रदेश के रहने वाले प्रवीण कुमार एक पैरा एथलीट हैं। प्रवीण ने 18 साल की उम्र में ही टोक्यो पैरालंपिक गेम्स में सिल्वर मैडल जीता है। उन्होंने टी64 वर्ग की ऊंची कूद प्रतिस्पर्धा जीतकर सिल्वर मैडल अपने नाम किया है।

प्रवीण कुमार का एक पैर जन्म से ही सामान्य से छोटा है। वे पहले वॉलीबॉल खेलते थे लेकिन बाद में ऊंची कूद में आने का मन बनाया। अपने एक छोटे पैर की कमजोरी को ही उन्होंने जीत का हथियार बना लिया। 2019 में प्रवीण ने वर्ल्ड चैंपियनशिप खेलों में शानदार प्रदर्शन किया था। हालांकि वे मैडल से चूक गए, क्योंकि चौथे स्थान पर आए थे।

एक नया इतिहास रच डाला:

प्रवीण कुमार टी44 क्लास के विकार में आते हैं लेकिन वे टी64 में भी हिस्सा ले सकते हैं। टोक्यो पैरालंपिक गेम्स 2020 में 2.07 मीटर की छलांग लगाकर प्रवीण रजत पदक के दावेदार बन गए हैं। इसी के साथ उन्होंने एक नया एशियन रिकॉर्ड भी बना दिया है।

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13. हरविंदर सिंह:

हरविंदर सिंह ने टोक्यो पैरालंपिक 2020 में तीरंदाजी में कांस्य पदक हासिल किया है। उन्होंने यह मैडल कोरिया के किम सू को मात देकर अपने नाम किया है। 30 वर्षीय हरविंदर सिंह हरियाणा के कैथल से ताल्लुक रखते हैं।

2018 में पैरा एशियन गेम्स में हरविंदर सिंह ने तीरंदाजी (archery) में स्वर्ण पदक जीता था। मध्यम वर्गीय किसान के बेटे हैं हरविंदर सिंह। पंजाब यूनिवर्सिटी (पटियाला) से अर्थशास्त्र में पीएचडी कर रहे हैं हरविंदर।

पैरा तीरंदाजी में रचा इतिहास:

हरविंदर सिंह पैरा तीरंदाजी में मैडल जीतने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। जब वे डेढ़ साल के थे तब उन्हें डेंगू हो गया था। स्थानीय डॉक्टर के गलत इंजेक्शन के असर ने हरविंदर के पैरों का विकास धीमा कर दिया था। उनके पैर सामन्य व्यक्ति की अपेक्षा कमजोर थे। 

प्रैक्टिस के लिए खेत को ही बनाया आर्चरी रेंज:

पिछले साल के लॉकडाउन में उनकी प्रैक्टिस में बाधा आ रही थी इसलिए खेत में ही आर्चरी रेंज बनाने का आइडिया आया।  इस मैडल को दिलाने में हरविंदर के पिता का भी बड़ा योगदान है। फसल काटने के बाद खाली पड़े अपने खेतों में तीरंदाजी के लिए रेंज बनवा दी थी। जिसके चलते हरविंदर की ट्रेनिंग ठीक से चल सकी। उसका रिजल्ट आप सब के सामने है।

14. प्रमोद भगत :

हाजीपुर, बिहार से ताल्लुक रखने वाले प्रमोद भगत ने पुरुष एकल एसएल3 वर्ग में पैरा बैडमिंटन गोल्ड जीता है। प्रमोद भगत ने यह खिताब पैरा ओलंपिक खेलों में ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को हराकर जीता है। पैरा बैडमिंटन को पहली बार पैरा ओलंपिक में जगह दी गई है। प्रमोद भगत पैरालंपिक खेल के पैरा बैडमिंटन में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं।

45 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय पदक जीत चुके हैं प्रमोद भगत:

बिहार में जन्मे प्रमोद भगत एक किसान परिवार में पैदा हुए थे। बचपन में ही पोलियो की वजह से उनका एक पैर खराब हो गया था। उनकी बुआ किशुनी के पास कोई बच्चा नहीं था इसलिए उन्होंने प्रमोद को गोद ले लिया। और वे अपनी बुआ के साथ भुवनेश्वर चले गए। पोलियो होने बाद भी उन्हें बैडमिंटन से बहुत लगाव था। 

वहीं पर उन्होंने बैडमिंटन की प्रैक्टिस की और जिला स्तर, फिर राज्य स्तर से राष्ट्र व अंतर्राष्ट्रीय यात्रा तय की। 2018 एशियन गेम्स में प्रमोद ने एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल जीता। वर्ल्ड चैंपियनशिप में चार स्वर्ण पदक उनके नाम हैं। और अब ये टोक्यो पैरालंपिक का गोल्ड मैडल मिलाकर 45 से ज्यादा मैडल जीत चुके हैं प्रमोद भगत।

15. कृष्णा नागर:

22 वर्षीय कृष्णा नागर ने टोक्यो पैरालंपिक में पुरुष एकल पैराबैडमिंटन के एसएल6 क्लास में जीता गोल्ड मैडल। उन्होंने यह खिताब हांगकांग के चू मान को शिकस्त देकर अपने नाम किया है। कृष्णा नागर पैराबैडमिंटन में स्वर्ण पदक जीतने वाले दूसरे खिलाड़ी हैं। इससे पहले प्रमोद भगत ने पैराबैडमिंटन में स्वर्ण पदक जीतकर देश का गौरव बढ़ाया है।

गलियों और पार्क में सीखा गेम:

कृष्णा नागर के पिता ने मीडिया को बताया कि वो गलियों और पार्क में बैडमिंटन खेला करता था। इससे पहले वह सारे खेल खेलता था। 2017 से कृष्णा ने बैडमिंटन को अपना खेल चुना और फिर इसमें आगे बढ़ते चला गया। कृष्णा नागर एशियन गेम्स और वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी मेडल हासिल कर चुके हैं।

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16. सुहास यथिराज (IAS):

38 वर्षीय सुहास यथिराज ने टोक्यो पैरालंपिक में एसएल4 क्लास बैडमिंटन में रजत पदक हासिल किया है। उन्होंने यह मैडल पुरुष एकल पैराबैडमिंटन फाइनल मुकाबले में फ्रांस के लुकास माजुर से हराकर प्राप्त किया है। एसएल4 क्लास में वो खिलाड़ी आते हैं जिनके पैर में कोई विकार होता है और ये खड़े होकर खेलते हैं।

सुहास एलवाई एक पैरालंपियन होने के साथ ही एक काबिल प्रशासनिक अधिकारी भी हैं। वे 2007 बैच के आईएएस अफसर हैं। 2020 से सुहास नोएडा के जिलाधिकारी (डीएम) के रूप सेवा कर रहे हैं। कोविड 19 लॉकडाउन के दौरान हुई थी सुहास एलवाई की नोएडा में तैनाती। कोरोना फ्रंटवारियर की अगुआई कर चुके हैं सुहास एलवाई। इस तरह से सुहास एलवाई पैरालंपिक गेम्स में मैडल जीतने वाले पहले आईएएस अधिकारी बन गए हैं।

17. मनोज सरकार :

मनोज सरकार ने पैराबैडमिंटन एसएल3 क्लास में कांस्य पदक हासिल किया है। सेमी फाइनल में ब्रिटेन के डेनियल बेथेल से मुकाबले में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। मनोज ने जापान के देयसुख को हराकर देश को पैरालंपिक में ब्रॉन्ज मेडल दिलाया है। 

बचपन में तेज बुखार के चलते हुआ पैर खराब: 

उत्तराखंड के मनोज सरकार का जीवन बहुत ही गरीबी में गुजरा है। बचपन में तेज बुखार आया था लेकिन इलाज के लिए नहीं थे पैसे। एक झोलाछाप डॉक्टर से इलाज कराते समय गलत इंजेक्शन की वजह से पैर में कमजोरी आ गई। 

बैडमिंटन का जुनून सवार था लेकिन नहीं थे रैकेट खरीदने के लिए पैसे:

जब मनोज छोटे थे तो किसी को बैडमिंटन खेलते देख घरवालों से रैकेट के लिए जिद की थी। खेतों में काम करके उनकी मां ने मनोज के लिए रैकेट खरीदा था। घर के आंगन में मां की साड़ी को बांधकर नेट बनाकर बैडमिंटन खेलते थे। रैकेट और शटल खरीदने के लिए दूसरों के घरों में पीओपी का काम भी किया।

इंटरमीडिएट तक सामान्य खिलाड़ी की तरह खेलते रहे। अच्छा प्रदर्शन देख बैडमिंटन खिलाड़ी डीके सेन ने मनोज को पैरा बैडमिंटन के लिए प्रेरित किया। 2017 में पिता की मृत्यु के बाद टूट गए थे मनोज लेकिन अपने खेल के जुनून को नहीं टूटने दिया। हर मुश्किल हालात में खुद को संभाला और अपनी प्रैक्टिस करते रहे। मनोज सरकार अर्जुन अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं।

देश- दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो सामान्य से भी मुश्किल हालात में रह रहे हैं। लेकिन ये हालात उनके जुनून और पैशन को नहीं हरा सकते। क्योंकि उन्होंने उस क्षेत्र विशेष में मेहनत और दृढ़ निश्चय से खुद को एक मजबूत ढाल बना लिया है। जब तक वे अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लें तब तक वो न थकेंगे और न उस राह से डिगेंगे। 

उम्मीद है, आपको इन वीर योद्धाओं की मेहनत और हमारा ये प्रयास पसंद आया होगा। यदि आपको ये लेख (Motivation chahiye to paralympic khiladiyon se lo) पढ़कर मोटिवेशन मिले तो हमें कॉमेंट कीजिए। हमारे लिए आपके कॉमेंट्स बहुत प्रेरणादायक होते हैं। आप अपने दोस्तों को भी शेयर कर सकते हैं।

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